नई दिल्ली: कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने शुक्रवार को लोकसभा में अपने पहले संबोधन में केंद्र सरकार पर कड़ा हमला बोला। उन्होंने चुनावों में बैलेट पेपर के इस्तेमाल की मांग करते हुए कहा कि इससे “दूध का दूध और पानी का पानी” हो जाएगा। प्रियंका गांधी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह सत्ता में बने रहने के लिए पैसे के बल पर विपक्षी सरकारों को गिरा रही है।
प्रियंका गांधी ने लोकसभा में अपने संबोधन में कहा, “आप लोग राजनीति में न्याय की बात करते हैं, लेकिन आप लोग सरकार को पैसों के बल पर गिरा देते हैं। अगर बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं, तो इससे सब कुछ साफ हो जाएगा। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तापक्ष के नेता पुरानी घटनाओं को बार-बार गिनते हैं, लेकिन उन्हें अपनी गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की ओर बढ़ना चाहिए।
प्रियंका गांधी ने विपक्षी नेताओं पर सरकार द्वारा लगाए जा रहे फर्जी मुकदमों और गिरफ्तारियों का भी विरोध किया। उन्होंने कहा, “विपक्षी नेताओं पर फर्जी मुकदमे लगाए जा रहे हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है।”
प्रियंका गांधी ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जो लोग जनता में भय फैलाते थे, अब वही लोग खुद भय के माहौल में जी रहे हैं। उन्होंने कहा, “ऐसा डर का माहौल तो पहले अंग्रेजों के राज में भी नहीं था। लेकिन, यह देश डर से नहीं, साहस से चलेगा।”
प्रियंका गांधी ने आलोचना करते हुए कहा कि अब सत्ता में बैठे लोग जनता के बीच जाने से डरते हैं और आलोचनाओं को सुनने से कतराते हैं। “आज के राजा जनता के बीच में जाने से डरते हैं, जबकि पहले राजा भेष बदलकर जनता में जाते थे। अब मौजूदा सरकार आलोचना से डर रही है, और ऐसी स्थिति को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस सरकार में सदन में चर्चा कराने की हिम्मत नहीं है।”
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में संभल हिंसा का भी जिक्र किया, जिसमें कुछ लोग उनसे मिलने आए थे। उन्होंने मृतक के परिवार के सदस्यों की बात करते हुए बताया कि 17 वर्षीय अदनान और उजैर ने उनसे अपनी बात साझा की। प्रियंका ने कहा, “अदनान का सपना था कि वह बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा और अपने पिता के सपने को साकार करेगा। यह सपना और आशा हमारे भारत के संविधान ने उनके दिल में डाली है।”
प्रियंका गांधी का यह संबोधन केंद्र सरकार और चुनावी प्रक्रिया पर कड़ी टिप्पणी करने के साथ-साथ समाज और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की आवश्यकता पर भी जोर देता है।