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महाकुंभ में नागा संन्यासियों के शिविर में पशु प्रेम का अनोखा रूप, भक्ति और साधना के साथ जुड़ा एक नया पहलू

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प्रयागराज: महाकुंभ के अखाड़ा सेक्टर में भक्ति, साधना और अध्यात्म के विभिन्न रंग देखने को मिल रहे हैं। इन रंगों में एक नया और दिलचस्प पहलू नागा संन्यासियों का पशु प्रेम बनकर उभरा है। विशेष रूप से, गुरुग्राम के खेटाबास आश्रम से आए जूना अखाड़े के श्री महंत तारा गिरि का अपने पालतू डॉग सोमा के साथ धूनी रमाना श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन गया है।
श्री महंत तारा गिरि ने बताया कि उनका पालतू डॉग सोमा, जो ल्हासा अप्सो नस्ल का है, उनके साथ महाकुंभ में आया है। सोमा की जन्मतिथि सोमवार को होने के कारण उसका नाम सोमा रखा गया। महंत तारा गिरि के अनुसार, सोमा न केवल एक खूबसूरत और खास डॉग है, बल्कि यह अत्यधिक वफादार, स्नेही और सतर्क भी है। इस दौरान, सोमा अब तिलक लगवाने और जटाएं बंधवाने के साथ-साथ सात्विक भोजन भी करती है, जो उसकी आध्यात्मिकता और संतों के साथ घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है।
महंत तारा गिरि की शिष्या पूर्णा गिरि ने बताया कि साधु-संतों का कोई परिवार नहीं होता है, ऐसे में सोमा जैसे पालतू उनके लिए संतान के समान है। पूर्णा ने बताया कि साधना में जितना समय लगता है, उससे कहीं अधिक समय वे सोमा को सजाने-संवारने में देती हैं, जो दर्शाता है कि उनका पालतू एक अतिथि की तरह उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इसके अलावा, महाकुंभ के अखाड़ा सेक्टर में एक और साधु, महंत श्रवण गिरि का भी पशु प्रेम देखने को मिला। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर से आए महंत श्रवण गिरि के साथ उनका पालतू डॉग लाली हमेशा रहता है। महंत श्रवण गिरि के अनुसार, लाली उनके साथ 2019 के कुंभ में प्रयागराज से काशी जाते वक्त मिली थी। तब से लाली उनके साधना का हिस्सा बन चुकी है। महंत श्रवण गिरि का कहना है कि जब वह साधनारत होते हैं, तो लाली उनके शिविर के बाहर उनकी रक्षा करती है।
महंत श्रवण गिरि ने लाली के लिए हेल्थ कार्ड भी बनवाया है, जिसमें लाली को निशुल्क उपचार मिल रहा है। यह उनके पशु प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो सिर्फ एक साधक की भक्ति नहीं, बल्कि उसके पालतू के प्रति स्नेह और जिम्मेदारी को भी दर्शाता है।
महाकुंभ में इन नागा संन्यासियों का पशु प्रेम अब श्रद्धालुओं के लिए एक नया अध्याय बन चुका है, जो यह साबित करता है कि भक्ति और साधना सिर्फ इंसान तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि यह सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा को भी बढ़ावा देती है।

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