उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद में तहसील शिकारपुर की एक हिंदू महिला, सुनीता, दबंगों के डर से बुर्का पहनकर अदालत पहुंची। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि तहसील प्रशासन में फरियादियों की सुनवाई का कोई इंतजाम नहीं है। सुनीता ने आरोप लगाया कि जमीन विवाद से संबंधित मामलों में बिना पैसे के किसी भी अधिकारी ने उनकी बात नहीं सुनी।
सुनीता ने बताया कि वह पिछले चार साल से तहसील शिकारपुर के चक्कर लगा रही हैं, लेकिन उनकी फाइल पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। उन्हें हर बार तारीख पर तारीख दी जाती है। उन्होंने जिलाधिकारी से भी कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन तहसील प्रशासन ने उनके मामलों को अनसुना कर दिया। सुनीता ने कहा, “मैं बहुत परेशान हूं। मेरे साथ पहले भी अभद्रता की गई है। मैं अपनी पहचान छुपाकर यहां आई हूं क्योंकि मुझे डर है।”
वकील मूलचंद गोड ने बताया कि सुनीता का मामला गंभीर है और वह दहशत में जी रही हैं। “यह पहली बार नहीं है जब सुनीता बुर्का पहनकर आई हैं। इससे पहले भी वह अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा कर चुकी हैं। यह साबित करता है कि हमारे नेता महिला सुरक्षा के दावों में असफल रहे हैं,” उन्होंने कहा।
पीड़िता के मामले में थाना पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे साफ होता है कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस दोनों ही अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं। सुनीता का जमीनी विवाद काफी जटिल है और प्रतिवादी कई बार तहसील परिसर में हिंसा कर चुके हैं, लेकिन पुलिस ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया।
अब सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महिला सुरक्षा की योजनाओं का क्या हुआ? सुनीता की यह स्थिति उनकी नीतियों की पोल खोलती है। स्थानीय अधिकारियों की निष्क्रियता और पुलिस की लापरवाही इस घटना को और भी गंभीर बनाती है। भविष्य में यह देखना होगा कि क्या सुनीता को न्याय मिलेगा या उसे बार-बार तारीख पर तारीख मिलती रहेगी। फिलहाल, बुलंदशहर का यह मामला महिला सुरक्षा के दावों को चुनौती देता है, और प्रशासन को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।