यूपी के बुलंदशहर अहार क्षेत्र में नवरात्र के दौरान बच्चों की टोली केशू और झांझी के गीत गाते हुए नजर आ रही है। गांव दरावर, मौहरसा, रजापुर, पौटा, बढ़पुरा और अहार जैसे गांवों में सूरज ढलने के साथ ही बच्चे अपने घरों से निकलकर दूसरे मोहल्लों में इस परंपरा को निभाने के लिए निकल पड़ते हैं। ये बच्चे देर रात तक अपने घरों में लौटते हैं, जबकि उनके गाए गीत क्षेत्र में एक विशेष आनंद का संचार करते हैं।
बच्चों ने बताया कि यह प्राचीन परंपरा सदियों से चली आ रही है। अमित कुमार, एक स्थानीय बच्चे ने कहा, “दशहरा के दिन सुबह-सुबह हम घर-घर जाकर केशू मांगते हैं और फिर तालाब के किनारे जाकर विधिवत केशू की शादी झांझी से करने की परंपरा निभाते हैं।” इस उत्सव के दौरान बच्चे अपने गांव में एकत्र होकर सामूहिक रूप से इस समारोह को मनाते हैं।
बुजुर्ग हरि सिंह का कहना है कि यह परंपरा महाभारत युद्ध के समय से जुड़ी हुई है और अब भी जीवित है। उन्होंने बताया कि इस परंपरा के माध्यम से न केवल बच्चों में एकता और सहयोग की भावना विकसित होती है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करने में मदद करती है।
इस दौरान समर कुमार, रिंकू, वंदना, मोहित, तन्वी और चिंकी जैसे कई अन्य बच्चे भी मौजूद रहे, जो इस परंपरा को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
बच्चों की यह टोली न केवल अपने गांवों में परंपरा को जीवित रख रही है, बल्कि उन्होंने इस संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का भी संकल्प लिया है। नवरात्र के इस पावन अवसर पर उनके प्रयासों से केशू और झांझी की यह परंपरा न केवल पुनर्जीवित हो रही है, बल्कि इसे एक नई पहचान भी मिल रही है।